अग्नि को हिन्दुओ मैं पवित्र मानकर पूजा जाता है। ज्वाला माता जी की ज्योत यहाँ सदियों से जल रही है। भू वैज्ञानिको का मानना है की ज्वाला माता के मंदिर की जगह तेल और गैस के भण्डार है मगर सुरीना मैं ONGC की कोशिश नाकाम रही इसे बंद कर दिया गय। ये जाँच आज़ादी से पहले से शुरू हो गई थी। 1853 यहाँ का सर्वेक्षण करने के बाद अंग्रेज़ो ने जानने की बहुत कोशिश की लेकिन खोज का काम होते होते वक़्त गुजर गया उन्हें वह कुछ भी नहीं मिल। 1940 मे आज़ादी ने जोर पकड़ा और खोज आगे नहीं बढ़ पाई। सवतंत्रा क बाद नेहरू जी ने रोमानिया, इटली, फ़्रांस के वैज्ञानिको की मदद से इस इलाके मैं खुदाई और जांच का काम शुरू कराया। वैज्ञानिको ने यहाँ तेल और प्राकृतिक गैस की संभावना जताई। कांगड़ा मैं ONGC ने 1957 मैं पहली बार खुदाई का काम शुरू किया था।
रोमैंया और रूस की देखरेख में ये खुदाई 2 साल तक चली। 1700 मीटर के खनन के बाद 1959 मैं इसे छोड़ दिया गया। 80-90 के शक्तक मैं फिर तलाश शुरू की गई। 1987 मैं फ्रांस के सर्वे के आधार पर फिर खोज की गई और 3 कुए बनाए गए ज्वालामुखी बग्गी कुए की खुदाई 4935 मीटर तक गई। नूरपुर मैं इतनी हे खुदाई की गई और चांगद तलाई 6720 मीटर खुदाई की गई। लेकिन खाली हाथ रहने के बाद 1993 में इस तलाश को अधूरा छोड़ दिया। कड़ी मसकत के बाद भी इन्हे ज्वाला क जलने का कोई भी स्त्रोत नहीं मिला। यह आज तक रहस्य हे बना हुआ है अभी तो कोई भी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया है अभी तक 10 बड़ी कोशिशे हो चुकी है। 2009 की आखरी कोशिश मैं हिमाचल के उद्योग मंत्री किशन कपूर ने कहा था की यहाँ पानी मिला जिसमे बहुत कम मात्रा में गैस थी। अर्थात अंत में ये हे पता चला ये एक चमत्कार है।
आज तक यह पता नहीं चल सका है की ज्वाला माता जी के मंदिर में ज्वाला बिना घी,तेल के केइसदे जल रही है। न ही आग से धुआँ निकलता है न ही कोई ताप लगता है आखिर इसके पीछे क्या रहस्य है और यदि कोई रहस्य है तो अज्ज तक किसी ने इसकी जांच क्यों नहीं की? इन्ही सवालो के जवाब आज मैंने अध्यन करने के बाद आपके लिए लेकर आया हू। हिन्दू धर्म में चमत्कार देखने को बहुत मिलते है तो आज हम हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित कालीधार पहाड़ी पर बसा हुए जवाला मंदिर की जलती हुई ज्वाला के रहस्य के बारे में जानेंगे।