मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था | मौर्य राजवंश ने 137 साल तक भारत पर राज किया | इसकी स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य और उसके मंत्री कौटिल्य को दिया जाता है | यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों से शुरू हुआ जहां आज के बिहार और बंगाल स्थित है | इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जिसे आज पटना के नाम से जाना जाता है | चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ अपने साम्राज्य का विस्तार किया | उसने कई छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकंदर के आक्रमण के बाद पैदा हो गए थे | 316 ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तर पश्चिमी भारत पर अधिकार जमा लिया था और आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ |
सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य राजवंश सबसे महान एवं शक्तिशाली बन कर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ | मौर्य वंश में चंद्रगुप्तमौर्य,बिंदुसार,अशोक,कुणाल,दशरथ,संप्रति,चालिसुख,देवबर्मन,शतब्रमण और देवद्रत नाम के महान राजा हुए | चंद्रगुप्त मौर्य और मोरियो का मूल 325 ईसा पूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत पर सिकंदर का शासन था | यह वही इलाका है जहां आज का संपूर्ण पाकिस्तान स्थित है | जब सिकंदर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तो एक ब्राह्मण जिसका नाम चाणक्य था मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आया | चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता था | उनका वास्तविक ना विष्णुगुप्त था | उस समय मगध एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभर रहा था | जो पड़ोसी राज्यों की आंखों में कांटे की तरह चुभ रहा था उस समय मगध के सम्राट धनानंद ने चाणक्य को अपने दरबार से निकाल दिया था | उसने कहा कि तुम एक पंडित हो और अपनी चोटी का ही ध्यान रखो युद्ध करना राजा का काम है तुम सिर्फ भिक्षा मांगे इस प्रकार उनको अपमानित कर नंदवंशी शासक धनानंद ने उनकी शिखा पकड़कर दरबार से बाहर निकलवा दिया था | तभी चाणक्य ने प्रतिज्ञा ली कि धनानंद को एक दिन सबक सिखा कर रहेंगे |
कुछ विद्वानों का मानना है कि चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति उनकी माता मोरा से मिली है मोरा शब्द का संशोधित शब्द मौर्य है यानी कि मोरा से ही मौर्य शब्द बना है हालांकि इतिहास में यह पहली बार देखा गया कि माता के नाम से पुत्र का वंश चला हो चंद्रगुप्त मौर्य एक शक्तिशाली शासक था | वह उसी गण प्रमुख का पुत्र था जो कि चंद्रगुप्त की बाल्यावस्था में ही एक योद्धा के रूप में मारा गया | चंद्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे | इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया एवं एक सफल और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र की नींव डाली जो आज तक एक आदर्श है |
मगध पर विजय
इसके बाद चाणक्य ने भारत भर में जासूसों का एक जाल सा दिया | जिससे राजा के खिलाफ गद्दारी इत्यादि की गुप्त सूचना एकत्र की जा सके उस समय यह एक अभूतपूर्व कदम था पूरे राज्य में गुप्त चरो का जाल बिछाने के बाद उसने चंद्रगुप्त को यूनानी आक्रमणकारियों को मार भगाने के लिए तैयार किया | इस कार्य में उसे गुप्त चोरों के विस्तृत जाल से बहुत मदद मिली | मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में गृह युद्ध को उकसाया उसके गुप्त चरो ननंद के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया | इसके बाद नंद ने अपना पद छोड़ दिया और चाणक्य को विजयश्री प्राप्त हुई नंद को निर्वासित जीवन जीना पड़ा | जिसके बाद उसका क्या हुआ यह एक रहस्य है आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास जीता और इसके साथ उसको सत्ता का अधिकार भी मिल गया |
चंद्रगुप्त का साम्राज्य विस्तार उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था | मगध पर कब्जा होने के बाद चंद्रगुप्त सत्ता के केंद्र पर काबिज हो चुका था | चंद्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ कर दिया | इसकी जानकारी अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से मिलती है | रुद्रदामन का जूनागढ़ शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बांध से पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था | पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय राज्यपाल था | उत्तर पश्चिमी भारत को यूनानी शासक से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया | चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को 305 पूर्व के आसपास हराया था | ग्रीक विवरण पर इस विषय का उल्लेख नहीं है पर इतना कहा जाता है कि चंद्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने कंधार,काबुल,हेरात और बलूचिस्तान के प्रदेश चंद्रगुप्त को दे दिया था |
इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने 500 हाथी भेंट किए थे | यह भी कहा जाता है कि चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी करनालिया से विवाह कर लिया था | करनालिया को हिलना भी कहा जाता है | कहा जाता है कि यह पहला अंतरराष्ट्रीय विवाह था | सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था | प्लूटार के अनुसार सेन्डकोट्र्स यानी चंद्रगुप्त उस समय तक सिंहासन पर आसीन हो चुका था | उसने अपनी 600000 सैनिकों की विशाल सेना से संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त कर ली और अपने अधीन कर लिया यह टिप्पणी थोड़ी अतिशयोक्ति ही कही जा सकती है क्योंकि इतना ज्ञात है कि कावेरी नदी और उसके दक्षिण के क्षेत्रों में उस समय जो लोग पांडेय सत्य पुत्रों तथा केरल पुत्रों का शासन था |
अशोक के शिलालेख कर्नाटक में चित्रलदुर्ग एरागुड़ी तथा मास्की में पाए गए हैं | उसके शीला लिखित धर्म उपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल,पांडे तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है क्योंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती यशो या उसके पिता बिंदुसार ने दक्षिण में कोई युद्ध लड़ा हो और उसमें विजय प्राप्त की हो ऐसा माना जाता है कि उन पर चंद्रगुप्त ने हीं विजय प्राप्त की थी |
बिंदुसार
चंद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार सत्तारूढ़ हुआ पर उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है | दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार का श्रेय आमतौर पर बिंदुसार को ही दिया जाता है हालांकि उसके विजय अभियान का कोई साक्ष्य नहीं है जैन परंपरा के अनुसार उसकी मां का नाम ढूंढ था | पुराणों में वर्णित बिंदुसार ने 25 वर्षों तक शासन किया था | उसे अमित्र घाट यानी दुश्मनों का संघार करने वाला की उपाधि भी दी गई थी जिस यूनानी ग्रंथों में
अमितरुकेडिश का नाम दिया जाता है | बिंदुसार आजीवक धर्म को मानता था | उसने एक यूनानी शासक एंटीऑक्स प्रथम से सूखेअंजीर,मीठीशराब,दार्शनिक की मांग की थी उसे अंजीर व शराब दी गई किन्तु दार्शनिक देने से इंकार कर दिया गया |
चक्रवर्ती सम्राट अशोक
अशोक सम्राट अशोक भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक है | साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में उनका नाम अकबर जैसे महान शासकों के साथ लिया जाता है | हालांकि वे अकबर से बहुत शक्तिशाली एवं महान सम्राट रहे हैं कई विद्वान तो सम्राट अशोक को विश्व इतिहास के सबसे सफलतम शासक भी मानते हैं | अपने राजकुमार के दिनों में उन्होंने उज्जैन तथा तक्षशिला के विद्रोह को दबा दिया था | कलिंग की लड़ाई उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई उनका मन युद्ध में नरसंहार से ग्लानि से भर गया |
उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया तथा उसके प्रचार के लिए बहुत कार्य किए सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में उपगुप्त निदिशित किया था | उन्होंने देवनाम्प्रिया और प्रियदर्शी जैसी उपाधि धारण की सम्राट अशोक के शिलालेख तथा सेवाओं पर उत्कीर्ण उपदेश भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह पाए गए हैं | उसने धर्म का प्रचार करने के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजें जिन जिन देशों में प्रचारक भेजे गए उनमें सीरिया तथा पश्चिमी एशिया का एनपीओकश्तियों,मिश्र का टॉलमीफिलाडेलस, मगदुनिया का एंटीगोनिश गोनाट्स, शायरीइन का मेगास तथा अपायर्स का एलेग्जेंडर शामिल थे | अपने पुत्र महेंद्र और एक बेटी को उन्होंने राजधानी पाटलिपुत्र से श्रीलंका जल मार्ग से रवाना किया | पटना यानी पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक महेंद्र घाट का नाम उसी महेंद्र के नाम पर रखा गया है | युद्ध से मन ऊब जाने के बाद भी सम्राट अशोक ने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था | ऐसा विदेशी आक्रमण से अपने साम्राज्य को बचाने के लिए आवश्यक था | दोस्तों अगले भाग History Of India In Hindi में हम मौर्य साम्राज्य के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात करेंगे |
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